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भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019-20 क्या है?

 

New Education Policy 2020 | न्यू एजुकेशन (शिक्षा ) पॉलिसी 2020 से जुड़े सभी महत्वपूर्ण बिंदु


करीब 34 वर्ष बाद आई इस एजुकेशन पॉलिसी में स्कूल की पढ़ाई से लेकर हायर एजुकेशन तक बहुत से बड़े परिवर्तन किए गए हैं। पीएम मोदी के निर्देशन में हुई कैबिनेट मीटिंग में इस न्यू पॉलिसी पर मुहर लगाई गई।

आजाद भारत के इतिहास में तीन दफे शिक्षा नीति की घोषणा की गयी है। पहली बार 1968 में जब श्रीमती इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थीं तथा दूसरी बार 1986 में जब राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे। इसके बाद 34 वर्षों के एक लम्बे अन्तराल के बाद कोरोना महामारी के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काल में नयी शिक्षा नीति की घोषणा की गयी। इसके क्या प्रभाव देश की शिक्षा व्यवस्था पर होंगे यह तो आनेवाला समय ही बता सकता है। इतना तो तय है कि असर अवश्य होगा।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019-20 क्या है?

यहां हम जानेंगे न्यू एजुकेशन पॉलिसी की विशेष बातें, और जानेंगे कैसे पूरी तरह परिवर्तित हो जाएगा स्कूल, कॉलेज आदि का एजुकेशन सिस्टम।

1). विद्यालयों में 10+2 खत्म, अब स्टार्ट होगा 5+3+3+4 फॉर्मेंट

2). छठी क्लास से रोजगारपरक शिक्षा

3).10 वीं एवं 12 वीं की बोर्ड परीक्षा सरल होगी

4). 5th क्लास तक मातृ भाषा में पढ़ाई

5). विद्यालयों में इस प्रकार से होगा चाइल्ड्स की परफॉर्मेंस का मूल्यांकन

6). स्नातक में 3-4 वर्ष की डिग्री, मल्टिपल एंट्री एवं एग्जिट

7). न्यू पॉलिसी में M.Phil. खत्म

8). समाप्त होंगे यूजीसी, एनसीटीई एवं एआईसीटीई, बनेगी एक नियामक संस्था

9). कॉलेजों को कॉमन एग्जाम का ऑफर

10). विद्यालय में पूर्व प्राथमिक स्तर पर विशेष पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा

11). स्कूल-कॉलेज आदि की फ़ीस पर कंट्रोल के लिए तन्त्र बनेगा

12). राष्ट्रीय शोध संस्थान (एनआरएफ) की प्रिपरेशन

13). स्कूल की पढ़ाई, हायर एजुकेशन के साथ खेती-किसानी की शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, कानूनी शिक्षा एवं टेक्निकल एजुकेशन

14). संगीत, कला, शिल्प, योग, खेल, सामुदायिक सेवा जैसे सारे सब्जेक्ट्स को सिलेबस में सम्मिलित किया जाएगा।

15). ऑन-लाइन एजुकेशन पर जोर

16). कला, कैरियर और खेल से संबंधित एक्टिविटीज के लिए बाल भवन का निर्माण

17). नई शिक्षा नीति के तहत डीम्ड यूनविर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज एवं स्टैंडएलोन इंस्टिट्यूशंस सबके लिए समान नियम

18). MHRD का नेम बदला

19). त्रि-भाषा सूत्र

20). फॉरेन यूनिवर्सिटीज को इंडिया में कैंपस खोलने की इजाजत और छात्रवृत्ति के लिए पोर्टल का विस्तार


1. स्कूलों 10+2 खत्म, अब शुरू होगा 5+3+3+4 फॉर्मेंट
अब स्कूल के पहले पांच साल में प्री-प्राइमरी स्कूल के तीन साल और कक्षा एक और कक्षा 2 सहित फाउंडेशन स्टेज शामिल होंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। अगले तीन साल का स्टेज कक्षा 3 से 5 तक का होगा। इसके बाद 3 साल का मिडिल स्टेज आएगा यानी कक्षा 6 से 8 तक का स्टेज। अब छठी से बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। चौथा स्टेज (कक्षा 9 से 12वीं तक का) 4 साल का होगा। इसमें छात्रों को विषय चुनने की आजादी रहेगी। साइंस या गणित के साथ फैशन डिजाइनिंग भी पढ़ने की आजादी होगी। पहले कक्षा एक से 10 तक सामान्य पढ़ाई होती थी। कक्षा 11 से विषय चुन सकते थे।

अभी तक सरकारी स्कूल पहली कक्षा से शुरू होते हैं। लेकिन नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद पहले बच्चे को पांच साल के फाउंडेशन स्टेज से गुजरना होगा। फाउंडेशन स्टेज के आखिरी दो साल पहली कक्षा और दूसरी कक्षा के होंगे। पांच साल के फाउंडेशन स्टेज के बाद बच्चा तीसरी कक्षा में जाएगा। यानी सरकारी स्कूलों में तीसरी कक्षा से पहले बच्चों के लिए 5 लेवल और बनेंगे।

5 + 3 + 3 + 4 के नए स्कूल एजुकेशन सिस्टम में पहले पांच साल 3 से 8 साल के बच्चों के लिए, उसके बाद के तीन साल 8 से 11 साल के बच्चों के लिए, उसके बाद के तीन साल 11 से 14 साल के बच्चों के लिए और स्कूल में सबसे आखिर के 4 साल 14 से 18 साल के बच्चों के लिए निर्धारित किए गए हैं।

2.छठी कक्षा से रोजगारपरक शिक्षा
नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने के लिए बनाई गई समिति का नेतृत्व कर रहे डॉ. कस्तूरीरंगन ने कहा, अब छठी कक्षा से ही बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा। नई शिक्षा नीति बेरोजगार तैयार नहीं करेगी। स्कूल में ही बच्चे को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी।

3. 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा आसान होगी
दसवीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव किए जाएंगे। बोर्ड परीक्षाओं के महत्व को कम किया जाएगा। कई अहम सुझाव हैं। जैसे साल में दो बार परीक्षाएं कराना, दो हिस्सों वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) और व्याख्त्मक श्रेणियों में इन्हें विभाजित करना आदि। बोर्ड परीक्षा में मुख्य जोर ज्ञान के परीक्षण पर होगा ताकि छात्रों में रटने की प्रवृत्ति खत्म हो। बोर्ड परीक्षाओं को लेकर छात्र हमेशा दबाव में रहते हैं और ज्यादा अंक लाने के चक्कर में कोचिंग पर निर्भर हो जाते हैं। लेकिन भविष्य में उन्हें इससे मुक्ति मिल सकती है। शिक्षा नीति में कहा गया है कि विभिन्न बोर्ड आने वाले समय में बोर्ड परीक्षाओं के प्रैक्टिकल मॉडल को तैयार करेंगे। जैसे वार्षिक, सेमिस्टर और मोड्यूलर बोर्ड परीक्षाएं।
नई नीति के तहत कक्षा तीन, पांच एवं आठवीं में भी परीक्षाएं होगीं। जबकि 10वीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं बदले स्वरूप में जारी रहेंगी।

ई शिक्षा नीति में पांचवीं तक और जहां तक संभव हो सके आठवीं तक मातृभाषा में ही शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी।

5. स्कूलों में ऐसे होगा बच्चों की परफॉर्मेंस का आकलन
बच्चों की रिपोर्ट कार्ड में बदलाव होगा। उनका तीन स्तर पर आकलन किया जाएग। एक स्वयं छात्र करेगा, दूसरा सहपाठी और तीसरा उसका शिक्षक। नेशनल एसेसमेंट सेंटर-परख बनाया जाएगा जो बच्चों के सीखने की क्षमता का समय-समय पर परीक्षण करेगा। सौ फीसदी नामांकन के जरिए पढ़ाई छोड़ चुके करीब दो करोड़ बच्चों को फिर दाखिला दिलाया जाएगा।

6. ग्रेजुएशन में 3-4 साल की डिग्री, मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम
उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने बताया कि नई नीति में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट (बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी) व्यवस्था लागू किया गया है। आज की व्यवस्था में अगर चार साल इंजीनियरंग पढ़ने या छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो कोई उपाय नहीं होता, लेकिन मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और 3-4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। यह छात्रों के हित में एक बड़ा फैसला है।
3 साल की डिग्री उन छात्रों के लिए है जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेना है और शोध में नहीं जाना है। वहीं शोध में जाने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी। 4 साल की डिग्री करने वाले स्‍टूडेंट्स एक साल में MA कर सकेंगे। नई शिक्षा नीति के मुताबिक यदि कोई छात्र इंजीनियरिंग कोर्स को 2 वर्ष में ही छोड़ देता है तो उसे डिप्लोमा प्रदान किया जाएगा। इससे इंजीनियरिंग छात्रों को बड़ी राहत मिलेगी। पांच साल का संयुक्त ग्रेजुएट-मास्टर कोर्स लाया जाएगा। एमफिल को खत्म किया जाएगा और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एक साल के बाद पढ़ाई छोड़ने का विकल्प होगा। नेशनल मेंटरिंग प्लान के जरिये शिक्षकों का उन्नयन किया जाएगा।

बीएड 4 साल का होगा। 4 वर्षीय बीएड डिग्री 2030 से शिक्षक बनने की न्यूनतम योग्यता होगी। नीति के अनुसार, पेशेवर मानकों की समीक्षा एवं संशोधन 2030 में होगा और इसके बाद प्रत्येक 10 वर्ष में होगा। शिक्षकों को प्रभावकारी एवं पारदर्शी प्रक्रियाओं के जरिए भर्ती किया जाएगा। पदोन्नति योग्यता आधारित होगी। कई स्रोतों से समय-समय पर कार्य-प्रदर्शन का आकलन किया जाएगा।

7. नई नीति में MPhil खत्म
देश की नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब छात्रों को एमफिल नहीं करना होगा। एमफिल का कोर्स नई शिक्षा नीति में निरस्त कर दिया गया है। नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अब छात्र ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके बाद सीधे पीएचडी करेंगे। 4 साल का ग्रेजुएशन डिग्री प्रोग्राम फिर MA और उसके बाद बिना M.Phil के सीधा PhD कर सकते हैं। नई शिक्षा नीति के तहत एमफिल कोर्सेज को खत्म किया गया है। इसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है।

8. खत्म होंगे UGC, NCTE और AICTE, बनेगी एक रेगुलेटरी बॉडी
यूजीसी एआईसीटीई का युग खत्म हो गया है। उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने बताया कि उच्च शिक्षा में यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई की जगह एक नियामक होगा। कॉलेजों को स्वायत्ता (ग्रेडेड ओटोनामी) देकर 15 साल में विश्वविद्यालयों से संबद्धता की प्रक्रिया को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा।

9. कॉलेजों को कॉमन एग्जाम का ऑफर
नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम का ऑफर दिया जाएगा। यह संस्थान के लिए अनिवार्य नहीं होगा। राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी यह परीक्षा कराएगी।

10. स्कूल में प्री-प्राइमरी लेवल पर स्पेशल सिलेबस तैयार होगा
स्कूल शिक्षा सचिव अनीता करवाल ने बताया कि स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा में दस-दस बड़े सुधारों पर मुहर लगाई गई है। नई नीति में तकनीक के इस्तेमाल पर विशेष ध्यान दिया गया है। प्री-प्राइमरी शिक्षा के लिए एक विशेष पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा। इसके तहत तीन से छह वर्ष तक की आयु के बच्चे आएंगे। 2025 तक कक्षा तीन तक के छात्रों को मूलभूत साक्षरता तथा अंकज्ञान सुनिश्चित किया जाएगा। मिडिल कक्षाओं की पढ़ाई पूरी तरह बदल जाएगी। कक्षा छह से आठ के बीच विषयों की पढ़ाई होगी।

11. स्कूल, कॉलेजों की फीस पर नियंत्रण के लिए तंत्र बनेगा
खरे ने बताया कि उच्च शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन स्वत: घोषणा के आधार पर मंजूरी मिलेगी। मौजूदा इंस्पेक्टर राज खत्म होगा। अभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय और प्राइवेट विश्वविद्यालय के लिए अलग-अलग नियम हैं। भविष्य में सभी नियम एक समान बनाए जाएंगे। फीस पर नियंत्रण का भी एक तंत्र होगा।

12. नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की तैयारी
सभी तरह के वैज्ञानिक एवं सामाजिक अनुसंधानों को नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाकर नियंत्रित किया जाएगा। उच्च शिक्षण संस्थानों को बहु विषयक संस्थानों में बदला जाएगा। 2030 तक हर जिले में या उसके आसपास एक उच्च शिक्षण संस्थान होगा। शिक्षा में तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। इनमें आनलाइन शिक्षा का क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेट तैयार करना, वर्चुअल लैब, डिजिटल लाइब्रेरी, स्कूलों, शिक्षकों और छात्रों को डिजिट संसाधनों से लैस कराने जैसी योजनाएं शामिल हैं।

13. स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा के साथ कृषि शिक्षा, कानूनी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसी व्यावसायिक शिक्षा भी नई शिक्षा नीति के दायरे में होगा।

14. कला, संगीत, शिल्प, खेल, योग, सामुदायिक सेवा जैसे सभी विषयों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इन्हें सहायक पाठ्यक्रम नहीं कहा जाएगा।

15. ऑनलाइन एजुकेशन पर जोर
नए सुधारों में टेक्नोलॉजी और ऑनलाइन एजुकेशन पर जोर दिया गया है। कंप्यूटर, लैपटॉप और फोन इत्यादि के जरिए विभिन्न ऐप का इस्तेमाल करके शिक्षण को रोचक बनाने की बात कही गई है।

16. हर जिले में कला, करियर और खेल-संबंधी गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक विशेष बोर्डिंग स्कूल के रूप में 'बाल भवन' स्थापित किया जाएगा

17. अभी हमारे यहां डीम्ड यूनविर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज और स्टैंडअलोन इंस्टिट्यूशंस के लिए अलग-अलग नियम हैं। नई एजुकेशन पॉलिसी के तहते सभी के लिए नियम समान होगा।

18. एमएचआरडी का नाम बदला
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है।

19. त्रि-भाषा फॉर्मूला
विद्यार्थियों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को एक विकल्प के रूप में चुनने का अवसर दिया जाएगा। त्रि-भाषा फॉर्मूला में भी यह विकल्‍प शामिल होगा। इसके मुताबिक, किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी। भारत की अन्य पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे। विद्यार्थियों को 'एक भारत श्रेष्ठ भारत पहल के तहत 6-8 ग्रेड के दौरान किसी समय 'भारत की भाषाओं पर एक आनंददायक परियोजना/गतिविधि में भाग लेना होगा। कोरियाई, थाई, फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश, पुर्तगाली, रूसी भाषाओं को माध्यमिक स्तर पर पेश किया जाएगा ।

20. विदेशी यूनिवर्सिटी को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति और स्कॉलरशिप पोर्टल का विस्तार

नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति मिलेगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे भारत के स्टूडेंट्स विश्व के बेस्ट इंस्टीट्यूट व यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले सकेंगे। उन्हें विदेश नहीं जाना पड़ेगा।

एससी, एसटी, ओबीसी और एसईडीजीएस स्टूडेंट्स के लिए नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल को बढ़ाया जाएगा। एनईपी 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाया जाएगा।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 के प्रारूप में शिक्षण व्यवस्था को मुख्य रूप से चार भागों में बंटा गया है. पहले भाग में विद्यालयीय शिक्षा, दूसरे में उच्च शिक्षा और तीसरे में प्रौद्योगिकी, व्यावसायिक व वयस्क शिक्षा को रखा गया है. प्रारूप के चौथे भाग में राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के जरिये शिक्षा में बदलाव लाने की बात कही गयी है. विद्यालयीय शिक्षा इसके तहत निम्न बातों को शामिल किया गया है।

बचपन की देखभाल और शिक्षा : वर्ष 2025 तक तीन से छह वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को नि:शुल्क, सुरक्षित, उच्च गुणवत्ता पूर्ण और विकास के लिए उपयुक्त देखरेख और शिक्षा मुहैया कराने का लक्ष्य है।

यह सब स्कूल और आंगनबाड़ी जैसे संस्थानों के माध्यम से किया जायेगा. इन संस्थानों पर बच्चों के समग्र कल्याण यानी पोषण, स्वास्थ्य व शिक्षा की जिम्मेदारी होगी. ये संस्थाएं तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चों के विकास के लिए उनके घरों में समान सहायता प्रदान करेंगी।


नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति निःसंदेह अब तक किए गए सबसे अच्छे सुधारों में से एक है ।

यदि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसी नीति लागू की गई होती तो भारत में बेरोजगारी की समस्या नहीं होती और भारत विश्व के विकसित देशों के शिखर पर पहुंच गया होता ।

देर आयद , दुरुस्त आयद ।


तो दोस्तों कैसी लगी आपको नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आप अपने विचार नीचे कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं|

क्या है एनआरसी और सीएबी? What Is NRC And CAA Bill Meaning?

आइए जानते हैं क्या है एनआरसी और सीएबी?

 क्या है एनआरसी और सीएबी? What Is NRC And CAA Bill Meaning?

NRC का full form National Register of Citizens है। हिंदी में एनआरसी का फुल फॉर्म राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर है। यह एक रजिस्टर है जिसमें सभी वास्तविक भारतीय नागरिकों के नाम है। वर्तमान में, केवल असम में ही ऐसा रजिस्टर है। इसे अन्य राज्यों में भी बढ़ाया जा सकता है। नागालैंड पहले से ही एक समान डेटाबेस बना रहा है जिसे रजिस्टर ऑफ इंडिजिनस इनहेबिटेंट्स के रूप में जाना जाता है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 20 नवंबर 2019 को संसद में ऐलान किया कि पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लागू की जाएगी, जिसमें नागरिकों के जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक विवरण होंगे। राज्यसभा में शाह ने कहा कि NRC में धर्म के आधार पर लोगों को बाहर करने का कोई प्रावधान नहीं है|

NRC (नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर) केवल स्वदेशी लोगों और उन लोगों की पहचान करने के लिए असम के लिए एक अभ्यास था, जिनके पास 24 मार्च, 1971 की मध्यरात्रि तक राज्य / देश में प्रवेश का प्रमाण होगा। यदि आपके पास सबूत था, तो आप इस रूप में थे भारतीय नागरिक। असम राज्य ने उन लोगों के लिए प्रासंगिकता के दायरे को बढ़ाने का फैसला किया, जो सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए पर्याप्त रूप से स्थानीयकृत माने जाते थे यदि वे एक या दो चुनावों में मतदान करते थे या किसी ऐसे व्यक्ति के साथ प्रत्यक्ष रूप से सीधा संबंध साबित कर सकते थे जो 1951 में NRC पास कर चुका था। परीक्षा।

काफी उचित। में या बाहर के आधार पर अगर आप इसे साबित कर सकते हैं। निश्चित रूप से, मेरा अनुमान है कि केवल एक चीज जो चिड़चिड़ी हो सकती है, वह यह है कि भारतीय नागरिक न बनें और जो भी लाभ हो, उसी से आनंद लें। परीक्षण पास नहीं करने वालों की हालत तब तक जारी रह सकती है जब तक कि उनके देश उन्हें वापस नहीं ले जाते और वे जाना चाहते हैं। हालाँकि, तर्क मुझे इस बात पर चिंतित करता है कि जिसने भी दौड़ने का विकल्प चुना है, वह वापस लौटना चाहेगा।

अधिकारियों द्वारा इस अभ्यास को पूरी तरह से विफल कर दिया गया था और कई प्रमुख स्थानीय लोगों को छोड़ दिया गया था। इसका मतलब यह होगा कि वोटिंग आबादी ने एक हिट लिया था। और सभी राजनेताओं के लिए यह बुरी खबर है। यहां किसी से भी बात नहीं की।

टन के राजनीतिक हस्त-लेखन के बाद, बीजेपी ने फैसला किया कि एक देशव्यापी एनआरसी, जिसमें से एक असम से दिल्ली और बंगाल के करीब से सुना जा सकता है, निश्चित रूप से अराजकता और मेरी अच्छाई, वोटबैंक का नुकसान होगा।

एक और बैंक के अंतर्गत आने वाली बुरी खबर होगी।

इसके अलावा, अर्थव्यवस्था और pesky प्याज से ध्यान हटाने के लिए विपरीत दिशा में फेंके गए पत्थर को कभी मत भूलना - जो मेम वापस आ रहे हैं, वे वास्तव में बुरी खबर है। यहां तक ​​कि अति सक्रिय बीजेपी आईटी सेल और हमारे गैर-प्याज खाने वाले रेड एफएम ने कुछ सहयोगियों के साथ जो हमें अन्यथा समझाने की कोशिश की, हमारी आंखों को पत्थरबाजी वाले प्याज से दूर नहीं रख सके। एक भिंडी, क्या प्याजा अब एक प्याज़ था, बिंदिया करो। गंदा मजाक। बासी प्याज की तरह सँकरा।

NRC क्या है ? NRC से देश को क्या फ़ायदे होंगे ?



CAB जिसकी फुल फॉर्म है Citizenship Amendment Bill. अगर हिंदी में बात करे तो इसे नागरिकता संशोधन विधेयक. इस संशोधक विधेयक के जरिए The Citizenship Act, 1955 को बदलने की तैयारी है ताकि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का रास्ता खुल सके। आसान शब्दों में कहें तो यह बिल भारत के तीन पड़ोसी मुस्लिम बहुल देशों के गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का रास्ता आसान बनाता है। जहां तक सिटिजनशिप एक्ट 1955 का सवाल है, इसके मुताबिक स्वभाविक तरीके से नागरिकता पाने के लिए आवेदक के लिए जरूरी है कि वह बीते 12 महीने से भारत में रह रहा हो। वहीं, यह भी जरूरी है कि बीते 14 साल में से 11 साल से यहीं रहा हो। संशोधन के जरिए 11 साल की अर्हता को घटाकर 6 साल किया जा रहा है। हालांकि, इसके साथ एक विशिष्ट परिस्थिति यह भी जुड़ी है कि आवेदक का ऊपर बताए छह धर्मों और तीन देशों से ताल्लुक हो।
इस बात से बिलकुल इनकार नहीं है कि हममें से एक बार भारतीय उपमहाद्वीप के देशों ने पाकिस्तान और बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे राष्ट्रीय धर्म के साथ राष्ट्र बनना चुना (ठीक तकनीकी रूप से हमारा नहीं बल्कि भाई-भाई का?)। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन देशों में हिंदुओं को स्वतंत्र रूप से रहने की अनुमति नहीं थी और उन्हें भारत या बाहर भागने के लिए चुनने के लिए पर्याप्त उत्पीड़ित किया गया था। इस बात से कोई इंकार नहीं है कि इन देशों के जनसांख्यिकी में हिंदू आबादी में प्रतिशत में कमी आई है, क्योंकि बहुसंख्यक आबादी तेजी से बढ़ी है।

केंद्र में हमारे सामूहिक खून बहने वाले दिलों ने अब फैसला किया कि हमारे देश में मौजूद सभी विदेशी लोगों की आम सहमति फिर से उत्तर पूर्वी राज्यों से शुरू होगी और इस समय का उपयोग, टाइम स्टैम्प नहीं (ठीक है, बाद की तारीख जैसे कि 2014 कटऑफ है ) निर्णायक कारक के रूप में लेकिन धर्म।

इसलिए, यदि आप इस्लाम के अलावा एक विश्वास के हैं, तो पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान से भारत में भाग गए (2014 तक), आप एक भारतीय नागरिक बन सकते हैं।

कोई सवाल नहीं पूछा।

कोई भी मुसलमान जो धार्मिक अभियोजन के कारण भारत में नहीं आया है उसे इस विशेषाधिकार की अनुमति नहीं है।

किसी भी अन्य देश के अन्य धर्मों को विशेषाधिकार की अनुमति नहीं है - चाहे वे श्रीलंका के हिंदू हों या टिंबकटू। बस बात साबित करने के लिए।

जैसा कि हम भारतीयों को इस बिंदु पर पहचानने की जरूरत है कि यह अधिनियम उन वैध मुस्लिम प्रवासियों के साथ भेदभाव नहीं कर रहा है जिन्होंने एनआरआई टेस्ट पास किया था।

न ही यह भारत में मौजूदा मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण है।

उस रास्ते से, मैं कहूंगा कि मेरी प्रतिक्रिया यह है कि भारत अपने गुनाहों के लिए संसाधनों, नौकरियों, जमीन और सभी पर सात गुना अधिक लगाव कर सकता है और सात अरब पहले से ही दांत और नाखून से लड़ रहे हैं।

दुनिया की भविष्यवाणी है कि युद्ध पानी पर लड़े जाएंगे और यहाँ हम अपने पहले से ही फैले संसाधनों पर भारी दबाव को शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं - वे लोग जिनके लिए हम वास्तव में जिम्मेदार नहीं हैं।

एक शांतिपूर्ण असम जातीयता के नुकसान की आशंका को खत्म कर रहा है।

मुस्लिम भाई-बहन इसे धर्म के साथ सीधा संबंध मानते हैं।

क्या भारत इस समय इस अराजकता को बर्दाश्त कर सकता है, यह सवाल है जो जवाब देता है।

मैं केवल विचलित करने के लिए फेंके गए पत्थर की अपनी पुरानी उपमा पर वापस जा सकता हूं। जबकि CAB को क्रूर बहुमत के साथ पारित किया गया है, जबकि सोशल मीडिया एक गृह मंत्री के मास्टरस्ट्रोक के साथ है, जबकि नागरिकों को लाखों के रूप में जोड़ा जाएगा ताकि अरबों का पर्याप्त आनंद न हो, याद रखें कि किसी का भुगतान करना है।

और कौन हैं लेकिन जो ईमानदार करदाता हैं। और कौन है लेकिन जो साझा करेंगे इस सरकार ने नई नौकरियों को नहीं लाया, यह सिर्फ अधिक प्रतिस्पर्धा और कम मजदूरी और उच्च करों में लाया।

भ्रांति - तथ्य

इंटरनेट पर प्रसारित होने वाली गलत जानकारी की मात्रा चिंताजनक है। जिस तरह से लोगों को स्व-घोषित बुद्धिजीवियों द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है, उससे पता चलता है कि दूसरों से उधार लेने के बजाय हमारी खुद की राय बनाना कितना महत्वपूर्ण है। मैं बिल के बारे में कुछ गलतफहमी को दूर करना और तथ्यों को प्रदान करना चाहूंगा, पाठक तथ्यों की जांच कर सकते हैं और स्वयं निर्णय ले सकते हैं।

गलतफहमी 1- बिल मुस्लिम विरोधी है
तथ्य- बिल का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए बिल पारित किया गया है। और जैसा कि गृह मंत्री ने कहा, बिल नागरिकता देने और नहीं लेने के बारे में है।

2. भ्रांति 2- विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है जो भारत के क्षेत्र के भीतर सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है

तथ्य- अतीत में सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णय आए हैं जो समानता के अधिकार की व्याख्या करते हैं। समानता के अधिकार का अर्थ है equal समान लोगों के लिए समान अधिकार that। इसका मतलब है कि यह बिल समानता के अधिकार में बाधा नहीं डालता है क्योंकि जिन लोगों को नागरिकता दी जाएगी, वे रोहिंग्या घुसपैठियों के विपरीत अपने धर्म के कारण उपरोक्त तीन देशों में उत्पीड़ित हैं। यह विधेयक उसी तरह से अनुच्छेद 14 की अवज्ञा नहीं करता है जैसे कि सरकार कॉलेजों में आरक्षण और नौकरियों में नहीं करती है।

3. ग़लतफ़हमी 3- मोदी-शाह सरकार ने एक बहुत ही असंगत बिल बनाया है क्योंकि यह केवल तीन देशों को मानता है। श्रीलंका और म्यांमार क्यों नहीं?

तथ्य- 31000 लोगों की सूची है जो यूपीए शासन के बाद से भारत में रह रहे हैं। UPA सरकार ने उन्हें 'पंजीकरण पृष्ठ' प्रदान किए थे, जो उन्हें बिना वीज़ा के देश में रहने की अनुमति देते थे। वे लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान से हैं। इस विधेयक में उन लोगों को कानूनी अधिकार देने और उन्हें नागरिकता देने का प्रस्ताव किया गया है ताकि वे एक सामान्य जीवन जी सकें। इसलिए तीन देशों को यूपीए सरकार ने चुना था, न कि एनडीए सरकार ने।

4. भ्रांति 4- इस बिल के लागू होने से देश में लोगों की आमद होगी।

तथ्य- यह बिल केवल उन्हीं लोगों को नागरिकता देता है, जिनके पास पंजीकरण पर्चें हैं। इस विधेयक में तीन देशों के किसी भी हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि को मनमाने ढंग से नागरिकता प्रदान नहीं की गई। यह केवल उन 31000 लोगों के लिए है जो पंजीकृत हैं वे पहले से ही देश में रह रहे हैं, इसलिए आबादी का कोई प्रवाह नहीं है। यह विधेयक उन लोगों को समान अधिकार देने और उन्हें करदाताओं के समुदाय में लाने के बारे में है।

5. गलतफहमी 5- जल्द ही एनआरसी को लागू किया जाएगा और अगर वहाँ हैं, तो मान लीजिए, दो लोग जो एनआरसी में अपना नाम पाने में विफल रहते हैं, एक हिंडू है और दूसरा मुस्लिम है, हिंदू को तुरंत नागरिकता दी जाएगी और मुस्लिम को धोखा दिया जाएगा।

तथ्य- यह बिल केवल उन 31000 पंजीकृत लोगों पर लागू होता है और उनमें से कोई भी मुस्लिम नहीं है। उनके अलावा किसी और को कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से नागरिकता के लिए आवेदन करना होगा जो सभी के लिए समान है। और यह प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाएगी, ऐसा नहीं है कि हिंदुओं को तुरंत नागरिकता दी जाएगी और मुसलमानों को निर्वासित किया जाएगा। ऐसा होने पर दोनों को निर्वासित कर दिया जाएगा और किसी भी हिंदू को तुरंत नागरिकता नहीं दी जाएगी। एनआरसी ने हिंडू और मुसलमानों के बीच अंतर नहीं किया। कानून सभी के लिए समान होगा, इस बिल में पंजीकृत लोगों के अलावा हिंडस शामिल नहीं है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति एनआरसी में अपना नाम दर्ज करवाने में विफल रहता है, तो उसे अपने धर्म की परवाह किए बिना उन्हीं चीजों से गुजरना होगा। इसके अलावा, राष्ट्रव्यापी एनआरसी अभी भी एक प्रस्ताव है और इसे कैसे लागू किया जाएगा, जब यह अनुमोदन के लिए समानता में आता है। के बारे में धारणा बनाना समय की पूरी बर्बादी है। यह कुछ विदेशी अवधारणा नहीं है, दुनिया के कई देश एनआरसी को बनाए रखते हैं और वे बहुत अच्छा काम करते हैं। हमें सरकार पर भरोसा करना चाहिए कि एनआरसी सुचारू रूप से और ठीक से चलाया जाएगा। इससे पहले भी श्रीलंका में युद्ध के दौरान, भारत सरकार ने लगभग 1 करोड़ शरणार्थियों को वापस श्रीलंका भेज दिया था। उस समय कोई समस्या नहीं थी, इसलिए अब समस्या क्या है, यदि आप किसी भी धर्म के भारत के नागरिक हैं, तो आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है और यदि किसी को चिंता है, तो सभी को अपने धर्म के प्रति समान रूप से चिंतित होना चाहिए।

इसके अलावा हिंदू शरणार्थियों को यह साबित करना होगा कि वे तीन देशों में से एक शरणार्थी हैं। इसलिए जो लोग सोचते हैं कि बिना दस्तावेज वाले भारतीय, जिन्हें भारतीय नागरिक हैं, उन्हें सीएए के तहत नागरिकता मिल जाएगी, उन्हें यह भी बताना चाहिए कि कैसे एक भारतीय जिसके पास अपनी राष्ट्रीयता साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं हैं, वह साबित करेगा कि वह एक शरणार्थी है और पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश से संबंधित है। । इसलिए यदि एनआरसी को ठीक से लागू नहीं किया जाता है, तो हिंदू और मुस्लिम दोनों समान रूप से प्रभावित होंगे।

और एनआरसी असम में पहले ही लागू हो चुका है और वे एनआरसी के पक्ष में विरोध कर रहे हैं और वे एक मजबूत सीएए चाहते हैं जिसकी कटऑफ तिथि 1971 है। वे सीएए में किसी भी धर्म को शामिल करने के लिए विरोध नहीं कर रहे हैं।

6. गलत धारणा 6- इस विधेयक में देश की दुर्घटनाग्रस्त अर्थव्यवस्था से लोगों का ध्यान हटाने का प्रस्ताव किया गया है।

तथ्य- यह बिल भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में था और इसे लाया भी गया था | 

CAA

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019: हाइपर सरलीकृत

10 दिसंबर, 2019 को, नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा द्वारा पारित किया गया था और एक दिन बाद, राज्यसभा ने खुद को इसके लिए हाँ में सिर हिलाया।

मुझे एक डिस्क्लेमर से शुरू करना चाहिए जो इस लेख से पाठक के पास किसी भी संदेह को स्पष्ट करने की उम्मीद करता है और इसका उद्देश्य बचाव या खंडन करना नहीं है। यह केवल तथ्यों को बता रहा है और सवालों का जवाब दे रहा है।

इसके बाद, कृपया मुझे मोदी भक्त न कहें। मेरे पास किसी के भी भक्त होने के लिए मानसिक स्थान नहीं है, लेकिन मेरा अपना: P है

A. भारतीय नागरिक कौन हो सकता है?

भारतीय संविधान के प्रारंभ में नागरिकता:
चूंकि यह विभाजन के युग में बनाया गया था, इसलिए यह अधिनियम कहता है कि जो कोई भी 26 नवंबर 1949 तक भारत में रहता है, वह भारत का नागरिक है। उस समय, उन राज्यों से प्रवासियों की सहायता के लिए कई प्रावधान थे जो अब पाकिस्तान के स्वामित्व में थे।
जन्म से नागरिकता:
26 जनवरी, 1950 - 1 जुलाई, 1987: भारतीय भूमि पर जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति
1 जुलाई, 1987 - 3 दिसंबर, 2004: किसी भी व्यक्ति का जन्म ऐसा था, जो जन्म के समय माता-पिता में से कम से कम एक भारतीय नागरिक था।
3 दिसंबर, 2004 - वर्तमान: दोनों माता-पिता भारतीय नागरिक हैं, या एक माता-पिता एक भारतीय नागरिक हैं और दूसरा बच्चे के जन्म के समय एक गैरकानूनी अप्रवासी नहीं था।
3. वंश द्वारा नागरिकता:

26 जनवरी, 1950- 10 दिसंबर, 1992: यदि जन्म के समय पिता भारत के नागरिक थे, तो भारत के नागरिक।
10 दिसंबर, 1992- 3 दिसंबर, 2004: भारत के नागरिक यदि उनके माता-पिता में से किसी के जन्म के समय भारत के नागरिक हैं।
3 दिसंबर, 2004- वर्तमान: जब तक उनका जन्म भारतीय राजनयिक मिशन में जन्म तिथि के एक वर्ष के भीतर दर्ज नहीं किया जाता है, तब तक उन्हें भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा।
4. पंजीकरण द्वारा नागरिकता

विकिपीडिया परिभाषा

5. प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता

अप्रवासियों पर यह लागू होता है:

हमें यह स्पष्ट करने से शुरू करें कि यह अवैध आप्रवासियों पर लागू नहीं है।

प्राकृतिककरण द्वारा भारत की नागरिकता एक विदेशी द्वारा हासिल की जा सकती है जो 12 वर्षों के लिए भारत में एक साधारण निवासी है (12 महीने की अवधि के दौरान तुरंत आवेदन की तारीख से पहले और 11 साल के लिए 14 साल के कुल में 12 महीने से पहले)

बस एक उदाहरण: तो, अगर यह आज 17/12/19 है, तो आपको 17/12/18 से भारत में रहना चाहिए। और 2005-2019 के बीच, आपको कम से कम 11 साल तक भारत में रहना चाहिए।

ख। नागरिकता संशोधन अधिनियम क्या है?

सत्तारूढ़ पार्टी, बीजेपी द्वारा प्रस्तावित यह संशोधन अधिनियम, 2019 में, नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करना चाहता है। यह अल्पसंख्यक धर्मों के व्यक्तियों के लिए "भारतीय नागरिकता का मार्ग" प्रदान करता है अर्थात्
1. हिंदू
2. सिख
3. बौद्ध
4. जैन
5. पारसी
6. ईसाई
भारत के 3 पड़ोसी देशों से, अर्थात्, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश।

उपर्युक्त देश, कानून के अनुसार, अपने गठन के अनुसार, खुद को मुस्लिम राष्ट्र मानते हैं, लेकिन केवल मेरा विश्वास नहीं करते हैं।

बी क्या बिल कहता है की विशिष्टताओं में मिलता है:

"बशर्ते कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय से संबंधित कोई भी व्यक्ति, जो दिसंबर 2014 के 31 वें दिन या उससे पहले भारत में प्रवेश करता है" इस संशोधन के प्रावधानों से लाभान्वित होगा यदि वे अपने मूल देशों में "धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक उत्पीड़न का डर" का सामना करना पड़ा।

प्र। प्रावधान क्या है?

मुख्य रूप से, अधिनियम के तहत, प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता के लिए आवश्यकताओं में से एक यह है कि आवेदक को पिछले 12 महीनों के दौरान भारत में रहना चाहिए था, और पिछले 14 वर्षों में से 11 के लिए।

1. सीएए पहली बार अवैध प्रवासियों को पहली बार भारतीय नागरिक बनने का अधिकार प्रदान करता है, बशर्ते वे एक ही छह धर्मों और तीन देशों के हों।

2. सीएए इस 11 साल की आवश्यकता को समान छह धर्मों और तीन देशों से संबंधित व्यक्तियों के लिए 5 साल तक आराम देता है।

C. यह भारत की धर्मनिरपेक्षता को कैसे प्रभावित करता है?

1976 में संविधान के 42 वें संशोधन ने कई अन्य चीजों के अलावा, भारत के विवरण को "संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य" से "संप्रभु, समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य" में बदल दिया। यह उस समय इंदिरा गांधी की सरकार के अधीन था। हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि हममें से बहुत से लोग यह नहीं जानते कि बी.आर. हमारे संविधान के पिता अम्बेडकर वास्तव में, हमारे संविधान में "धर्मनिरपेक्ष" होने के खिलाफ थे। उनका मानना ​​था कि "समाज को अपने सामाजिक और आर्थिक पक्ष में कैसे संगठित किया जाना चाहिए, ये ऐसे मामले हैं जो समय और परिस्थितियों के अनुसार लोगों द्वारा स्वयं तय किए जाने चाहिए।"

1976 से पहले की प्रस्तावना

आज का भारतीय संविधान भारतीय गणराज्य के लिए एक आधिकारिक धर्म नहीं बताता है। प्रत्येक भारतीय नागरिक अपनी मर्जी से एक धर्म का पालन करने का अधिकार रखता है, यदि वे चाहें तो अन्य धर्मों में धर्म के आधार पर और पूजा पाठशालाओं का निर्माण कर सकते हैं।

डी। कौन प्रभावित और कैसे है?

अब, संविधान को सामान्य रूप से और विधेयक को दो अलग-अलग पक्षों पर रखें। संविधान नागरिकों पर लागू होता है और विधेयक गैर-नागरिकों पर लागू होता है|

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